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"बीत चुकी रात / बुद्ध / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर
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बीत चुकी रात फ़िलहल
अँधेरे से निकला हूँ
रोशनी है पठाने खाँ के गायन सी
गुलाम फ़रीद के बोल पर नाच रहे हैं पत्ते
मन में मोर पसार रहा पंख
कब बीतेंगी रातें
मैं नहीं निशाचर मैं जीवन का प्यासा
ढूँढ़ता हूँ सोते जीवन के
प्यार की बूँदें
रात का थका
सुबह समेट रहा हूँ बाँहें फैलाए
सूर्य नमस्कार नहीं सूरज को पास लाने की
मुद्राएँ हैं मेरे ख़यालों में
रूखा ही सही जीभ गर्म स्वाद चाहती है
अक्षर अक्षर जीवन बुनता हूँ
मात्राएँ गढ़ता हूँ ध्वनियाँ बाँधता हूँ
क़दम क़दम चलता हूँ
काल से होड़ के सूत्र सीखता हूँ
मैं नहीं निशाचर मैं जीवन का प्यासा
चीख़ता हूँ पठाने खाँ फ़रीद बनता हूँ
क्या हाल सुणावाँ दिल दा
कोई मरहम...।