भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शकुंतला के परीलोक में / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:32, 24 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

उफनती नदी के पास
एक औरत
हाथ में वायलिन
या कुछ ऐसा ही...

नंगे पाँव
घिरी छायाओं से अजूबा
और अंधकार बहुत-सा ऊपर मँडरता

और कुछ रंग
अंधकार होने से बचे हुए

औरत, हालाँकि
उजाले में है अब भी
स्याह होती हुई