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"छापा करती स्त्री / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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पत्ते की तरह छापे का
सिर लिए वह झुकी है
छापे पर
धूप उसकी देह तक
चली आई
छापे को उतारती वह कपड़े पर
कामना में उतरती है याद
देह में प्रेम
वह छापे से सिर नहीं उठाती।