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"विश्राम / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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दिनचर्या से थकी
वे लौटी हैं
थोड़े-से विश्राम में
देह पर
पुराना विषाद है
और रोज़मर्रा की नयी ऊब
शेष व्यस्तताओं का बोझ लिए
वे झुकी हैं अपने भीतर
कुछ देर
वे बिल्कुल नहीं चाहेंगी
किसी का कोई ख़ास दखल।