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"माँ और बच्चा / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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ज़ख्मों से भरा है सीना
वह सीने से
बच्चा चिपटाए है
वे तब भी दीखेंगे-
फटी-फटी देह के जटिल ज़ख़्म
और इच्छाएँ
सोचती है माँ चुपचाप
दूर दृश्यों को देखती हुई
कि मांस के थोड़ा ही नीचे हैं हड्डियाँ
ज़ख़्मों से झाँकती हुई।