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"पहाड़ / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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वे इतने पास थे
कि हरे नहीं थे
हरापन पुरानी काई
और कीचड़ से भरा धूसर था
जैसे घरों की आग
सुलग कर बुझी हुई।