भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रात को मोअतबर बनाने में / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem> रात को म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:59, 27 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

रात को मोअतबर बनाने में
सब हैं मसरुफ़ डर बनाने में

ज़ख़्म दिन भर कुरेदे जाते हैं
एक ताज़ा ख़बर बनाने में

सारी बस्ती उजाड़ के रख दी
आपने अपना घर बनाने में

फ़ैसला दर्द के ख़िलाफ़ रहा
आपको चारागर बनाने में

दिल की बर्बादियों का हाथ रहा
शायरी को हुनर बनाने में