भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुछ दोहे / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' }} Category:दोहे <poem> 1. पार उतर जाए कुशल ...) |
|||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
तन बुनता है चादारिया, मन बुनता है पीर | तन बुनता है चादारिया, मन बुनता है पीर | ||
एक जुलाहे सी मिली, शायर को तक़दीर | एक जुलाहे सी मिली, शायर को तक़दीर | ||
+ | |||
+ | 6. | ||
+ | बेशक़ मुझको तौल तू, कहाँ मुझे इनक़ार | ||
+ | पहले अपने बाट तो, जाँच-परख ले यार | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
16:03, 27 जनवरी 2019 का अवतरण
1.
पार उतर जाए कुशल किसकी इतनी धाक
डूबे अखियाँ झील में बड़े - बड़े तैराक
2.
जाने किससे है बनी, प्रीत नाम की डोर
सह जाती है बावरी, दुनिया भर का ज़ोर
3.
होता बिलकुल सामने प्रीत नाम का गाँव
थक जाते फिर भी बहुत राहगीर के पाँव
4.
फीकी है हर चुनरी, फीका हर बन्देज
जो रंगता है रूप को वो असली रंगरेज
5.
तन बुनता है चादारिया, मन बुनता है पीर
एक जुलाहे सी मिली, शायर को तक़दीर
6.
बेशक़ मुझको तौल तू, कहाँ मुझे इनक़ार
पहले अपने बाट तो, जाँच-परख ले यार