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"बीत गए युग फिरते-फिरते, चौरासी के फेरे मै / राजेराम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

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12:38, 8 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण

                   (18)

सांग:– महात्मा बुद्ध (अनुक्रमांक- 36)

जवाब – महात्मा बुद्ध का।

बीत गए युग फिरते-फिरते, चौरासी के फेरे मै,
बात पूराणी गया जमाना, वचन भूलग्या तेरे मै ।। टेक ।।

सौ-2 बार जन्म तेरा-मेरा, दुनिया मै इतिहास होया,
कदे तू थी चेली पार्वती की, मै भोले का दास होया,
नागण-नाग, शेर-सिंहणी, कदे काग, हंसणी-हांस होया,
कदे हाम गन्धर्व तू होई नृतकी, हूर सूरग मै रास होया,
14 विद्या, 18 सिद्धि, 64 कलां थी मेरे मै ।।

कदे पशु-परिंदे, असुर-देवता, कदे पिकम्बर-पीर बणे,
कदे होए नृप छत्रधारी, कदे रमते-राम फकीर बणे,
कदे भूखे-मंगते कोढी-कंगले, कदे हम सेठ अमीर बणे,
करणी मै भंग पड़या फेर भी, पेड़ नदी कै तीर बणे,
कदे बणके भील पारधी, डाकू प्रसिद्द चोर-लुटेरे मै ।।

मै तेरा पिता होया कै बार, तू होई बेटी तनै के बेरा,
कै बार भाई बाहण हो लिए, एक उदर मै था डेरा,
कै बार मै तनै ब्याहके ल्याया, बांध कांगणा सिर सेहरा,
कै बार तै मेरी माता हो ली, कै बार मै बेटा तेरा,
पागल दुनिया पड़ी भूल मै, इस गफलत के झेरे मै ।।

इब रट गोबिंद पार होज्यागी, लख्मीचंद की बण दासी,
मांगेराम गुरू का पाणछी, लिए धाम समझ कांशी,
कवियां मै संगीताचार्य, गांव लुहारी का बासी,
कथ दिया सांग महात्मा बुद्ध का, बणी रागणी फरमासी,
दुनिया चांद पै गई तू, क्यूँ रहग्या राजेराम अंधेरे मै ।।