भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्वप्न के संग हम नदी में / विशाल समर्पित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विशाल समर्पित |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:10, 8 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण

स्वप्न के संग हम नदी मे
धार के विपरीत बहते

कुछ नहीं
है पास फिर भी
लग रहा रीते नहीं हैं

आज तक
प्रारब्ध के प्रिय
खेल में जीते नहीं हैं

इस तरह हारे हुए हैं
हार को ही जीत कहते (1)

लाख चाहा
पर कभी भी
मन मुताबिक ढल न पाए

अंत तक
का दे भरोसा
दो क़दम संग चल न पाए

साथ यदि मिलता तुम्हारा
कष्ट हँसकर मीत सहते (2)

मौन होता
जा रहा मन
क्षोभ मन में अब नहीं है

हाँ मिलन
का लेशभर भी
लोभ मन में अब नहीं है

अब ह्रदय में तुम नहीं प्रिय
अब ह्रदय में गीत रहते (3)