भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घाव तुम्हारे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:हाइकु]] | [[Category:हाइकु]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
61 | 61 | ||
'''घाव तुम्हारे | '''घाव तुम्हारे | ||
पंक्ति 46: | पंक्ति 35: | ||
तुम प्राणों में रहो | तुम प्राणों में रहो | ||
इतना चाहूँ। | इतना चाहूँ। | ||
+ | 68 | ||
+ | भोर मुस्काई | ||
+ | मुकुलित कमल | ||
+ | नैन तुम्हारे | ||
+ | 69 | ||
+ | जन्मों की माया | ||
+ | कैसे है बाँधे जीव | ||
+ | मन व्याकुल। | ||
+ | 70 | ||
+ | नेह से भरे | ||
+ | गंगा नहाके आए | ||
+ | मृदु वचन। | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
11:05, 11 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण
61
घाव तुम्हारे
रिसे हैं निरंतर
मेरे भीतर।
62
प्यास बुझाई
जीभरके पिए थे
तेरे जो आँसू।
63
सीने लगाऊँ
हर अश्क तुम्हारा
मुझको सींचे।
64
सौ-सौ पहरे
फिर -फिर खुलते
घाव गहरे।
65
युगों से ओढ़ी
दुःख -भरी चादर
कैसे उतारूँ?
66
कुछ न जानूँ
धर्म -कर्म क्या होता
तुझको मानूँ
67
जग ये छोड़े
तुम प्राणों में रहो
इतना चाहूँ।
68
भोर मुस्काई
मुकुलित कमल
नैन तुम्हारे
69
जन्मों की माया
कैसे है बाँधे जीव
मन व्याकुल।
70
नेह से भरे
गंगा नहाके आए
मृदु वचन।