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"सर्दी लगे गाँठने चड्ढी / आजाद रामपुरी" के अवतरणों में अंतर

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<poem>पढ़-लिखकर हो गई सयानी,
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लिखने लगी मगन हो चिट्ठी!
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पढ़-लिखकर हो गई सयानी,
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लिखने लगी मगन हो चिट्ठी !
 
मौसम-टीचर ने वर्षा की,
 
मौसम-टीचर ने वर्षा की,
ऋतुशाला से कर दी छुट्टी!
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ऋतुशाला से कर दी छुट्टी !
  
 
मीठी किरणों की मुस्कानें,
 
मीठी किरणों की मुस्कानें,
 
लेकर सर्दी मचल रही है।
 
लेकर सर्दी मचल रही है।
 
घर-घर मेहमानी जाड़े की,
 
घर-घर मेहमानी जाड़े की,
ठंड हिरन-सी उछल रही है।
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ठण्ड हिरन-सी उछल रही है ।
  
 
गर्मी से जाड़े की चखचख,
 
गर्मी से जाड़े की चखचख,
झगड़ा बढ़ा, हो गई छुट्टी!
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झगड़ा बढ़ा, हो गई छुट्टी !
  
 
गरम पकौड़े रौब गाँठते,
 
गरम पकौड़े रौब गाँठते,
हँसने लगे चाय के प्याले।
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हँसने लगे चाय के प्याले ।
कंबल, पैंट, रजाई, मफलर,
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कम्बल, पैण्ट, रजाई, मफ़लर,
शान दिखाए शाल-दुशाले।
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शान दिखाए शाल-दुशाले ।
  
 
शोख चपल, अल्हड़ इठला कर,
 
शोख चपल, अल्हड़ इठला कर,
सर्दी लगी गाँठने चड्ढी!
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सर्दी लगी गाँठने चड्ढी !
 
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21:00, 17 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण

पढ़-लिखकर हो गई सयानी,
लिखने लगी मगन हो चिट्ठी !
मौसम-टीचर ने वर्षा की,
ऋतुशाला से कर दी छुट्टी !

मीठी किरणों की मुस्कानें,
लेकर सर्दी मचल रही है।
घर-घर मेहमानी जाड़े की,
ठण्ड हिरन-सी उछल रही है ।

गर्मी से जाड़े की चखचख,
झगड़ा बढ़ा, हो गई छुट्टी !

गरम पकौड़े रौब गाँठते,
हँसने लगे चाय के प्याले ।
कम्बल, पैण्ट, रजाई, मफ़लर,
शान दिखाए शाल-दुशाले ।

शोख चपल, अल्हड़ इठला कर,
सर्दी लगी गाँठने चड्ढी !