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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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हम उनखे देलिअन हें ताज जे हलथिन ओक्कर हकदार।हकदारपाछु छूट गेलै चोर-उचक्का लुटेरा आउ बटमार।। बटमार हम...गरीबन के जे दरद न´् नञ् बुझतइ ऊ कइसन हे राज।राजजेकर राज में बिकलइ सब दिन टके सेर खाजा भाजा।भाजाऊ की समझतइ अनकर दरद, जे हे चोरवा के सरदार।। सरदारपाछु ....काहे सूरज किरिंग के बिखेरे, चंदा फैलाबे उजाला।उजालाकाहे चिरैयाँ चुन चुन देहे बुतरुन के मुँह में निबाला।निबालाबूझे ई बतिया काहे न´् नञ् अपन देसवा के ताजदार।। ताजदारपाछु ....सुशासन के बेयार जब बहलइ कत्ते के हो गेलइ ओसउनी।ओसउनीहम की बताबी ई बुझे के बतिया दउनी पर हो गेलइ दउनी।दउनीपापी के पाप से घड़ा जब भरऽ हे धरा पर होबऽ हे अवतार।। अवतारपाछु ...चहुँदिस बह गेल विकास के गंगा, मेहनत के लगऽ हे नारा।नाराकुच्छो फिकर न´् नञ् सैलाब तक आबे इया पड़ जाये मारा।मारापत्थर से पानी निकाल के छोड़बै बहतइ गंगा के धारा।। धारापाछु ....आबऽ भइया आबऽ बहिनी ई बैठे के न´् नञ् समय हे।आगु-आगु झाँकऽ पाछु न ताकऽ रहे के अब निरभय हे।।हेदेखऽ रंगन-रंगन के फूल खिलल हे लहँगा हकै गोटेदार।। गोटेदारपाछु ...एक्के आदमी सबकुछ बदल देलक सज गेल अप्पन शहर।शहरअब एक्के घाट में पानी पिअ हे बाघा-बकरिया ठहर।ठहरमंतरी-संतरी कैसनो रहे, ई राजा हथ हमनदर।। हमनदर पाछु ....
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