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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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हम धरती पर सरग के लाके देखलइबइ गे मइया।मइयाऊसर भूमि के भी हम उर्बर बनाके रहबइ गे मइया।मइयाहरिअर-हरिअर गाछ लगइबइ परकिरती के सजइबइ।सजइबइअमरइया में झूम के चलबइ पिरीत के गीत हम गइबइ।गइबइआसमान में घुमड़ैत बदरा धरती पर हम लइबइ गे मइया।।मइया
ऊसर ....
आसमान आउ धरती के हइ जनम-जनम से नाता।नाताहम्मर गलती के कारण हे रुठला हमरा से विधाता।विधाताजइसे होतइ वइसे हम बरखा के मनइबइ गे मइया।।मइया
ऊसर ....
अइतहीं सावन भर जइतइ आरी आउर किआरी।किआरीकरे लगथिन सब्भे मिलके रोपनी के तइयारी।तइयारीआहर पोखरा आउ तलइया फिनु से भर जइतइ गे मइया।।मइया
ऊसर ....
बैल गिआरी घूँघरू बजतइ जिनगी के राग सुनइतइ।सुनइतइखेत जोतत हलवाहन के चेहरा फिनु मुसकइतइ।मुसकइतइघारा से बहरसी में तब पुष्प-कमल खिल जइतइ गे मइया।।मइया
ऊसर ...
दुलहिन जइसन खेता सजतइ अइतै मस्त बहार।बहारफुटे लगतइ सब के दिल में खुसियन के गुब्बार।गुब्बारलेके मउज-बहार के फिनु मन-मधुकर मुस्कइतइ गे मइया।।मइया
ऊसर ....
ढोलक झाँझ, मंजीरा बजतइ आउ बजतइ शहनाई।शहनाईढूंठ गाछ पर भी आ जइतइ फिनु से तरुणाई।तरुणाईराजा आउ रानी के कहानी फिनु से सुनबइबइ गे मइया।।मइया
ऊसर ....
सुनामी आव जलजला के अब नाम-निशान मिट जइतइ।जइतइकभियो न´् अइतइ गम के बदरा अँधिआरा छँट जइतइ।जइतइगाँव-गँवई आउ अप्पन शहरवा फिनु से सज जइतइ गे मइया।।मइया
ऊसर .....
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