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ग़ज़ल / उमेश बहादुरपुरी

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<poem>
दिल के दरद के दवा तो इहाँ शराब नञ् हेहे।पियेवाला के लगे नीक तो खराब नञ् हेहे।।केकरो ले ई दुनियाँ नञ् छोड़े के चाहीचाही।जीये ले ई दुनियाँ में सिरिफ शबाब नञ् हे।।पियेवाला ....अउ भी तो ढेर रिश्ता हेजीये के खातिर।हरेक बात में देबे के इहाँ जबाव नञ् हे।।
पियेवाला ....
अउ भी तो ढेर रिश्ता हे जीये के खातिर
हरेक बात में देबे के इहाँ जबाव नञ् हे
पियेवाला ...
ढेर फूल हे चमन में खिलल खिलल इहाँ
सुगंध के खातिर सिरिफ गुलाब नञ् हेहे।।
पियेवाला .....
हर हाल में इहाँ तोरा जीये पड़तो जिनगीजिनगी।मूड़ी नवा के जीयेवाला आफताब नञ् हेहे।।
पियेवाला ....
हे बेकार के ई जिनगी रफ्तार के बिनबिना।
हो सके जे नञ् पूरा ऊ कोय ख्वाब नञ् हे।
पियेवाला ....
रुक सकऽ हऽ कभिओ नञ् तूँ मंजिल के पहिलेपहिले।जेकर जवाब मिल सकऽ हे ऊ लाजबाब नञ् हेहे।।
पियेवाला ....
</poem>