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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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<poem>
हम्मर उमर हे बाबू बीस के,
ई धनियाँ हथिन तीस के हो।हो
डर लागे हमरा ई बात के,
ई मार देथिन पीस के हो। होहम्मर ....
हम हीऐ करिआ ई हथिन सामर,
हम ही ठिंगना ई हथिन लम्हर।लम्हर
रहे ले चाही हम तो दूर-दूर,
ई लाबे हमरा खींच के हो।। होडर ....
इनखा देखके डर ऐसन लागे,
भूत बैताल देख लोक जइसे भागे।भागे
ई चाभे ले दिखावे हमरा दाँत,
अप्पन बत्तीस से हो।। होडर ....
हम भागी दूर ई कहे बनऽ तिरसठ,
बना देबो सइयाँ जी तोहरा लंपट।लंपट
कइसुँ करके कर दऽ ए बाबा,
रिश्ता दुनहुँ के छत्तीस के हो।। होडर ....
रात हो या दीन कहे चलऽ संग-संग,
रख देलक करके हमरा तंग-तंग।तंग
हमरा पर उतारे रात रात भर,
ई तो अप्पन खीस के हो।। होडर ....एकरा से बढ़ियाँ रहतूँ हल कुँआरे।कुँआरेऐसन मेहररूआ के, के अब सम्हारे।सम्हारे
ई रख देलक अपन मसिनियाँ में,
हमरा के घीस के हो।। होडर .....
</poem>