भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डगर ज़िन्दगी की सरल बन गयी / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:57, 18 मार्च 2019 के समय का अवतरण

डगर ज़िन्दगी की सरल बन गयी
है मुश्किल स्वयं आज हल बन गयी

दिया हम ने प्याला था पीयूष का
सुधा बूँद थी क्यो गरल बन गयी

जो ईमानदारी का भरता था दम
कुटी कैसे उस की महल बन गयी

झरोखे सभी बन्द अब खुल गये
नयी रौशनी की पहल बन गयी

उठाया था साहस ने पहला कदम
हिमालय की चोटी तरल बन गयी