भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सूर्य बरसाता अगन है अब तो हो साया जरा / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:52, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण
सूर्य बरसाता अगन है अब तो हो साया ज़रा
शीश पर भगवान की करुणा की हो छाया ज़रा
धूप झुलसाती बदन को है पसीना चू रहा
किन्तु क्रोधित सूर्य को कब है तरस आया ज़रा
शुष्क धरती खेत में कितनी दरारें पड़ गयीं
स्वेद की बूँदों ने प्यासा गीत फिर गाया ज़रा
देखती नीले गगन को तृषित आँखें झर रहीं
प्यास इतनी नयन को है भीगना भाया ज़रा
लो उठीं काली घटाएँ हैं क्षितिज के छोर से
बादलों ने आज आ कर नीर बरसाया ज़रा