भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"होती रहती मनमानी है / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:08, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण
होती रहती मनमानी है
दुनियाँ फिर भी अनजानी है
है कानून नियम सब झूठे
बात हुई सब बेमानी है
लिखी हुई है जो ग्रंथों में
वे बातें किसने मानी है
दुनियाँ एक सफ़ारी जैसी
हर इक मानव सैलानी हैं
बिना नियम चलती सरकारें
होती बेहद हैरानी है