भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चरण कमल शारदे मात के नत शिर आ जाते हैं / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:13, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण

चरण कमल शारदे मात के नत शिर आ जाते हैं
दिवस निशा माता तेरी ही आरति हम गाते हैं

अब जग को मोहित करता है माता रूप तुम्हारा
गुंजित रहते वीणा के स्वर अमृत बरसाते हैं

करते रहते हम तेरा ही तो अभ्यास निरंतर
कर के तुझको नमन शारदे विमल बुद्धि पाते हैं

कथा-कहानी-उपन्यास सब अनुकंपा तेरी ही
छंद गीतिका मुक्तक लिखकर जग को सरसाते हैं

जग में पा सम्मान प्रतिष्ठा क्यों अभिमान दिखायें
माँ की चरण-धूलि पा कर ही तो सब हर्षाते हैं