भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब किसी की नहीं कदर होगी / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:39, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण

जब किसी की नहीं कदर होगी
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी

है ये दस्तूर इस जमाने का
रात बीतेगी तब सहर होगी

आँसुओं को भी धलकन होगा
पीर यूँ ही नहीं सबर होगी

कोई अपना ही जब बने दुश्मन
वो ही बर्बादियों का दर होगी

कोशिशें कीं न पर मिली मंजिल
रह गयी कुछ कहीं कसर होगी