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"शारदे की कृपा यदि रहे शीश पर, गीतिका का चमन मैं सजाती रहूँ / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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शारदे की कृपा यदि रहे शीश पर, गीतिका का चमन मैं सजाती रहूँ
माँ कभी साथ तुम छोड़ देना नहीं, मैं सदा गीत तुमको सुनाती रहूँ
वास माता करो तुम हृदय पद्म पर, नित नवाजो हमें मुक्त आशीष से
शुभ्रता माँ तुम्हारी रहे साथ तो, मैं हृदय के कलुष सब हटाती रहूँ
द्वेष या दंभ या लोभ जानूँ नहीं, अर्चना में तुम्हारी रहूँ नित निरत
शेष कर्मों का लेखा तुम्हीं जानती, मैं सदा मात्र यशगान गाती रहूँ
हंस वाहन तुम्हारा विराजे सदा, नीर में क्षीर में भेद करता रहे
मैं वही ज्ञान माँ आज अर्जित करूं, शीश चरणों में तेरे झुकाती रहूँ
जगजननि तेरी महिमा निराली बड़ी, अब न इसका कहीं ओर या छोर है
दो मुझे नित्य अपनी चरण साधना, सुर सुमन मैं हमेशा लुटाती रहूँ