भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो न सुधरें वही हालात थमा देता है / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:41, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण
जो न सुधरें वही हालात थमा देता है
मुझको वह कितने सवालात थमा देता है
वो समझता ही नहीं है मेरी बेचैनी को
आ के उलझे से खयालात थमा देता है
मेरी अंजुरी में दुआएँ उड़ेल कर जैसे
थरथराते हुए जज़्बात थमा देता है
चूम लेता है कभी झुक के मेरी पेशानी
फिर सुलगती हुई एक रात थमा देता है
सूंघ लेता है मेरे मेहंदी लगे हाथों को
साँस की महकती सौगात थमा देता है