भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"थम गयीं जैसे सारी रंगरलियाँ / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:49, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण

थम गयीं जैसे सारी रंगरलियाँ
कितनी सुनसान-सी हुई गलियाँ

कैसे मायूसियों के साये में
खिल रही हैं गुलाब की कलियाँ

इतनी नाजुक-सी है लता इसकी
तोड़ लेना न सेम की फलियाँ

भूख उस ओर तड़पती है इधर
भेंट होती हैं कनक की गलियाँ

माफ़ दुश्मन को मत कभी करना
फिर ना हो बाग अब कोई जलियाँ