भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"थे कल तलक जो रास्ते मंजिल की जानिब जा रहे / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:51, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण

थे कल तलक जो रास्ते मंजिल की जानिब जा रहे
उस राह पर है आज क्यों बादल घनेरे छा रहे

बेज़ार सूरत से हुए थे कल तलक महबूब जो
अब हैं गले में डाल बाहें प्रेम से बतिया रहे

शिकवा करें किससे शिकायत भी सुनेगा कौन अब
अपना समझ जो भूल की उस भूल पर पछता रहे

जिनको करीबी जान न्यौछावर किया था दिल कभी
वो आशियाने में हमारे आग आज लगा रहे

अब तो हकीकत ले समझ दे छोड़ अब विश्वास को
ले कर मशालें द्वेष की दुश्मन हमें समझा रहे