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"थे कल तलक जो रास्ते मंजिल की जानिब जा रहे / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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थे कल तलक जो रास्ते मंजिल की जानिब जा रहे
उस राह पर है आज क्यों बादल घनेरे छा रहे
बेज़ार सूरत से हुए थे कल तलक महबूब जो
अब हैं गले में डाल बाहें प्रेम से बतिया रहे
शिकवा करें किससे शिकायत भी सुनेगा कौन अब
अपना समझ जो भूल की उस भूल पर पछता रहे
जिनको करीबी जान न्यौछावर किया था दिल कभी
वो आशियाने में हमारे आग आज लगा रहे
अब तो हकीकत ले समझ दे छोड़ अब विश्वास को
ले कर मशालें द्वेष की दुश्मन हमें समझा रहे