भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम्हारे हिज्र में है ज़िंदगी दुश्वार बरसों से / सुमन ढींगरा दुग्गल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:00, 23 मार्च 2019 के समय का अवतरण
तुम्हारे हिज्र में है ज़िंदगी दुश्वार बरसों से
तुम्हें मालूम क्या तुम हो समंदर पार बरसों से
चले आओ तुम्हारे बिन न जीते हैं न मरते हैं
बनी है ज़िंदगी जैसे गले का हार बरसों से
कभी दुनिया से हम हारे कभी तुमसे कभी खुद से
हमारी इश्क़ में होती रही है हार बरसों से
तुम्हारे नाम का मै मांग में सिंदूर भरती हूँ
तुम्ही हो आईना मेरा तुम्ही सिंगार बरसों से
निकलना कश्ती ए उम्मीद तूफानों से मुश्किल है
एक ऐसे नाख़ुदा के हाथ है पतवार बरसों से
इसी मिल्लत के गहवारे को हिंदुस्तान कहते हैं
कहीं रौशन शिवाले और कहीं मीनार बरसों से
सुमन दिन रात किस की मुन्तज़िर रहती हैं ये आँखें
ये किस की राह तकते हैं दर ओ दीवार बरसों से