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"साधो यहै तरक्की आय / बोली बानी / जगदीश पीयूष" के अवतरणों में अंतर

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साधो यहै तरक्की आय
कुछु के मुंह मा सोने क सिक्का कुछु के मुंह मा हाय

ई बिकास की राह प चलिकै देसु कहां तक जाय
ख्यातन केरी फसिलि छांड़िकै सब कुछु महंग बिकाय

कर्जु लेय फिरि कसै सिकंजा देति सबै रगदाय
हारि क होरी आपनि देंही फांसि प दे लटकाय

प्रेमचंद होती तौ लिखती भांति भांति समुझाय
हब को द्याखै आपनि ढपली ठेलुहा रहे बजाय

हकु न मिलै भिच्छा मांगे ते गवा समझि मा आय
उइकी बढ़िकै नट्टी पकरौ जो तुमते खउख्याय