भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिउ हमार जुड़ुवाये हैं / बोली बानी / जगदीश पीयूष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKRachna |रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=बोली...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
करजौ कोऊ देति नहीं
 
करजौ कोऊ देति नहीं
 
अइसन दुरदिन आये हैं
 
अइसन दुरदिन आये हैं
 
+
</poem>
<poem>
+

07:42, 24 मार्च 2019 के समय का अवतरण

जिउ हमार जुड़ुवाये हैं
ह्यांवत के दिन आये हैं

लत्ता तन के फाटि रहे
कइसेव दिन हम काटि रहे
तपता बिनु चिनगिउ बुझिगै
क्वइरा के दिन आये हैं

राम-जोहरार न कइ पायेन
मतलब सिद्ध न कइ पायेन
थूकू निगिल लेइति है अब
चुप्पी के दिन आये हैं

भूलि गये मोलहे दादा
भूलि गये रामू काका
करजौ कोऊ देति नहीं
अइसन दुरदिन आये हैं