भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निदांण / रेंवतदान चारण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेंवतदान चारण |संग्रह=चेत मांनखा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:02, 3 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण

पांन कूंपळा काढ़िया रै, रंग सुरंगी रेत
ऊगौ अळियौ घास अणूतौ, आथूणै भरेत

करसा चेत सकै तौ चेत
पैली करले रै निदांण!
साटौ घास सिनावड़ौ जी, बेकरियौ नै कांटी
सळियौ खेत करै नीं जद तक खेती बधै न लांठी
लागै तीखी धार कसी रै, बाढ़ै जड़ा समेत
करसा चेत सकै तौ चेत
पैली करले रै निदांण!

चूसै घास खात नै पांणी, गाढ़ धांन रौ गाळै
थूं कांई जांणै थारी मैणत, पेट कितां रा पाळै
भरी गवाड़ी रैवै जद तक, करै मांनखौ हेत
करसा चेत सकै तौ चेत
पैली करले रै निदांण!

देख जमीं में जड़ां तूंतड़ा, जोर जमाणौ चावै
जीणौ व्है तो बांध मोरचौ, लांबी जेज लगावै
बोलै ज्यांरा बिकै बूंमड़ा खड़ै जकां रा खेत
करसा चेत सकै तौ चेत
पैली करले रै निदांण!