कितना हुआ हमको मलाल पूछते हैं।
5
जग की सब नफ़रत मैं ले लूँ, तुमको केवल प्यार मिले।
हम तो पतझर के वासी हैं,तुमको सदा बहार मिले।
सफ़र हुआ अपना तो पूरा,चलते-चलते शाम हुई
तुझको हर दिन सुबह मिले,नील गगन-सा प्यार मिले।
6
'''खुद से रही है शिकायत हमारी'''
'''किसी से रही न अदावत हमारी'''
'''बहुत हो चुका अब चलना पड़ेगा'''
'''माफ़ करना तुम हर आदत हमारी।'''
7
'''भूले ही नहीं जब ,तो कैसे तुम्हारी याद आती।'''
'''सूखे नहीं हैं अश्क ,कैसे हरपल हमको रुलाती।'''
'''आज वक़्त ने सजाए-मौत जीते जी दी है हमें'''
'''चले भी आओ मेरे प्राण ,रुह तुमको ही बुलाती।'''
8
जितना उसने था दुत्कारा, उतना पास तुम्हारे आया।
आरोपों की झड़ी लगाकर ,पास तुम्हारे ही पहुँचाया।
मन था जो गंगा -सा निर्मल,उसने समझा कलुष नदी-सा
कभी न मन में भाव रहा जो,उसने जो आरोप लगाया।
9
कहाँ खो गए आज प्रियवर,करके प्राणों का संचार।
फिर लौटा दो दिवस पुराने,पहना दो बाहों का हार।
कण्टक पथ है, टूटा रथ है,मन के अश्व घायल ,हारे
हाथ पकड़ लो अब तो मेरा, हो तुम ही मन का उजियार।
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