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"कौन कहता है कि ख़िद्मतगार होना चाहिए / दरवेश भारती" के अवतरणों में अंतर
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अब तो घर को घर नहीं बाज़ार होना चाहिए | अब तो घर को घर नहीं बाज़ार होना चाहिए | ||
11:44, 18 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण
कौन कहता है कि ख़िद्मतगार होना चाहिए
अब सियासत में फ़क़त ज़रदार होना चाहिए
ज़िन्दगी जीना कहाँ आसान है इस दौर में
इसको जीने के लिए फ़नकार होना चाहिए
बिन परों के क्या उड़ोगे आस्मां-दर-आस्मां
कामयाबी के लिए आधार होना चाहिए
दोस्ती की हो ये चाहे दुश्मनी की हो, मगर
इस ज़मीं को एकदम हमवार होना चाहिए
सब तेरी तक़रीर सुनकर हों फ़िदा तुझपे,मगर
शर्त है तर्ज़े-बयां दमदार होना चाहिए
ये भी हो और वो भी हो गोया हरिक शै इसमें हो
अब तो घर को घर नहीं बाज़ार होना चाहिए
ग़म ग़लत हो जायें हर इन्सां के लेकिन उसके साथ
हमसफ़र 'दरवेश'-सा ग़मख़्वार होना चाहिए