"माँ का आँचल / बाल गंगाधर 'बागी'" के अवतरणों में अंतर
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+ | प्रीत की ज्वाला भड़की है तन्हाई में | ||
+ | क्या बतलाऊं उसकी इस रुसवाई में? | ||
+ | मन की तन की प्यार भरी इन बातों मंे | ||
+ | वह याद है आता, इन बलखाती यादों में | ||
+ | जिसे संवारा करती थी, मैं जी भर भर के! | ||
+ | विरह वेदना आयी है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है, अब देखो कैसे? | ||
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+ | मृग थी मैं लाल मेरा मृग शावक था | ||
+ | ओझल नैंनों से न वह हो पाता था | ||
+ | मैं उसको कभी वह मुझको समझाता था | ||
+ | इठलाता वह हंसता गोद में आता था | ||
+ | समझता था कैसे, मेरा केश पकड़ के! | ||
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+ | विरह वेदना आई है अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे? | ||
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+ | रवि की लाली, लाल आसमां अति सुन्दर था | ||
+ | बिस्तर पर, वह क्रन्दन करता नन्दन था | ||
+ | कटि में घंुघरु, रुन-झुन-रुनझुन-रुनझुन था | ||
+ | मां! मां! कहकर रोता मां का नंदन था | ||
+ | सुनी रुलाई दौड़ी थी, मां देखो कैसे? | ||
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+ | विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है, अब देखो कैसे? | ||
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+ | खग की बोल विरह की बतिया | ||
+ | उसे सुनाती किस्सा रतिया | ||
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+ | सो जा मुन्ने हो गई रतिया | ||
+ | कोटि जतन सुलाती मतिया | ||
+ | नित्य का यह क्रम बना था कैसे कैसे? | ||
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+ | विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे? | ||
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+ | पढ़ना है जीवन में गर कुछ पाना है | ||
+ | तुझे स्कूल को मुन्ने मेरे जाना है | ||
+ | यश कीर्ति से जग में नाम कमाना है | ||
+ | मानव मूल्य, मानव तक पहुंचाना है | ||
+ | जा स्कूल लाल मेरे, वह हाथ पकड़ के! | ||
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+ | विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे? | ||
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+ | हल्ला गुल्ला शोर मचाती है मायी | ||
+ | उसे बताती उसे सुनाती है मायी | ||
+ | बांट मिठाई, खुशी उठा पर्वत लायी | ||
+ | खाओ बहना खाओ बेटा वो भाई | ||
+ | बिहा रचाई मुन्ने का, मां हंस हंस के! | ||
+ | |||
+ | विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे? | ||
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+ | वसन बदन छवि मोह को लेने वाली है | ||
+ | घर वाली उसकी भी आने वाली है | ||
+ | झट शादी हो जाए अब कुछ देर नहीं | ||
+ | नेक बहू अब घर में आने वाली है | ||
+ | खुशी मनाती झूम के नाच रही है कैसे कैसे! | ||
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+ | विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे? | ||
+ | |||
+ | अंजन चक्षु में कोयल सी मतवाली है | ||
+ | होंठ गुलाब गुलाबों की सी डाली है | ||
+ | नुपुर3 की पग4 पर तान खड़ने वाली है | ||
+ | पकवान मिठाई भरी की थाली-थाली है | ||
+ | बहू बनाती खाने को कैसे रच-रच के! | ||
+ | |||
+ | विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे? | ||
+ | |||
+ | घर में आई देर हुई अंधेर नहीं | ||
+ | लगता है अब उस सा कोई शेर नहीं | ||
+ | अब है सबसे बैर किसी की खैर नहीं, | ||
+ | झट बनवाओ पक्का घर खपरैल नहीं | ||
+ | ऊंची जाति की लड़की कोई गैर नहीं | ||
+ | घर परिवर्तित हुआ मेरा अब कुछ ऐसे! | ||
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+ | विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे? | ||
+ | |||
+ | बुनता है उसकी तानों बानों को | ||
+ | नहीं पूछता मेरे कुछ अरमानों को | ||
+ | नहीं सोचता बीती उन दास्तानों को | ||
+ | अछूत मानती क्यों मेरे खानदानों को | ||
+ | रोती है मां मुख पे, आंचल ढक-ढक के! | ||
+ | |||
+ | विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे? | ||
+ | ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे? | ||
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14:27, 24 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण
प्रीत की ज्वाला भड़की है तन्हाई में
क्या बतलाऊं उसकी इस रुसवाई में?
मन की तन की प्यार भरी इन बातों मंे
वह याद है आता, इन बलखाती यादों में
जिसे संवारा करती थी, मैं जी भर भर के!
विरह वेदना आयी है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है, अब देखो कैसे?
मृग थी मैं लाल मेरा मृग शावक था
ओझल नैंनों से न वह हो पाता था
मैं उसको कभी वह मुझको समझाता था
इठलाता वह हंसता गोद में आता था
समझता था कैसे, मेरा केश पकड़ के!
विरह वेदना आई है अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे?
रवि की लाली, लाल आसमां अति सुन्दर था
बिस्तर पर, वह क्रन्दन करता नन्दन था
कटि में घंुघरु, रुन-झुन-रुनझुन-रुनझुन था
मां! मां! कहकर रोता मां का नंदन था
सुनी रुलाई दौड़ी थी, मां देखो कैसे?
विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है, अब देखो कैसे?
खग की बोल विरह की बतिया
उसे सुनाती किस्सा रतिया
सो जा मुन्ने हो गई रतिया
कोटि जतन सुलाती मतिया
नित्य का यह क्रम बना था कैसे कैसे?
विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे?
पढ़ना है जीवन में गर कुछ पाना है
तुझे स्कूल को मुन्ने मेरे जाना है
यश कीर्ति से जग में नाम कमाना है
मानव मूल्य, मानव तक पहुंचाना है
जा स्कूल लाल मेरे, वह हाथ पकड़ के!
विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे?
हल्ला गुल्ला शोर मचाती है मायी
उसे बताती उसे सुनाती है मायी
बांट मिठाई, खुशी उठा पर्वत लायी
खाओ बहना खाओ बेटा वो भाई
बिहा रचाई मुन्ने का, मां हंस हंस के!
विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे?
वसन बदन छवि मोह को लेने वाली है
घर वाली उसकी भी आने वाली है
झट शादी हो जाए अब कुछ देर नहीं
नेक बहू अब घर में आने वाली है
खुशी मनाती झूम के नाच रही है कैसे कैसे!
विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे?
अंजन चक्षु में कोयल सी मतवाली है
होंठ गुलाब गुलाबों की सी डाली है
नुपुर3 की पग4 पर तान खड़ने वाली है
पकवान मिठाई भरी की थाली-थाली है
बहू बनाती खाने को कैसे रच-रच के!
विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे?
घर में आई देर हुई अंधेर नहीं
लगता है अब उस सा कोई शेर नहीं
अब है सबसे बैर किसी की खैर नहीं,
झट बनवाओ पक्का घर खपरैल नहीं
ऊंची जाति की लड़की कोई गैर नहीं
घर परिवर्तित हुआ मेरा अब कुछ ऐसे!
विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे?
बुनता है उसकी तानों बानों को
नहीं पूछता मेरे कुछ अरमानों को
नहीं सोचता बीती उन दास्तानों को
अछूत मानती क्यों मेरे खानदानों को
रोती है मां मुख पे, आंचल ढक-ढक के!
विरह वेदना आई है, अब देखो कैसे?
ऋतु पतझड़ की लाई है अब देखो कैसे?