गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
पानी की महिमा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
6 bytes added
,
11:36, 1 मई 2019
पानी मिल जाने पर सहसा गहरे सागर भरते ।।
बिन पानी के धर्म-काज भी,पूरा कभी न होता ।
'''
बिन पानी के मोती को
'''
,माला में कौन पिरोता ।।
इस दुनिया से चल पड़ता है ,जब साँसों का मेला ।
गंगा-जल मुँह में जाकर के , देता साथ अकेला । ।
वीरबाला
4,822
edits