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साँझ-बिहान, चढ़ल जवनिया की आपन-आपन टोली, उछलत-कूदत बानर हमजोली
बाँधे रेरी, रेरी में बोली आपन, आपन टोनबाज़ी, भीत-भीत उखाड़ रहे, नोंच रहे, सूखे
अधसूखे गोइंठेगोइँठे, भर रहे बोरा-बोरी, झोरा-झोरी भर गए तो ढेर चिपरी के
लिए, खोल दिए आपन-आपन कुर्ते-गंजी, चूकें-रुकें ना, कवनो
मौक़ा, मौक़ा के एको झोंका, हे होलरी
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