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"परेशान मत करो बच्चों / रणजीत" के अवतरणों में अंतर
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मात्र मिट्टी, बालू, पत्थरों का ढूह नहीं है यह
जीवित, जागृत, जंगम है यह पृथ्वी
एक अरब जीव-प्रजातियों का
हलचल-भरा वैश्विक मधुछत्ता
यह साँस लेती है, धड़कती है
सोती है, जागती है
करुणा और क्रोध करती है
दौड़ती है, भागती है
तुम्हारे तेजाबी धुएँ से इसकी साँस घुटती है
तुम्हारे खनन-दैत्यों से इसकी रूह कांपती है
तुम्हारे परमाणु-विस्फोटों से इसके कान फटते हैं
तुम्हारे विशाल बाँधों के बोझ से
इसका दिल दरकता है
यह पृथ्वी है- तुम्हारी माता
इसे इस तरह परेशान मत करो, बच्चों!