"उदासी ओढ़े / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | खुली अलकें | ||
+ | बोझिल हैं पलके | ||
+ | सँवारों इन्हें | ||
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+ | नींद न आई | ||
+ | पदचाप पाने में | ||
+ | उम्र बिताई | ||
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+ | सुगन्ध मिली | ||
+ | ये शरद चाँदनी | ||
+ | चाँदी से बनी | ||
+ | 185 | ||
+ | धुले रूप -सी | ||
+ | गुनगुनी धूप -सी | ||
+ | यादें तुम्हारी। | ||
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+ | आँचल छुपी | ||
+ | सूप भर बिखेरी | ||
+ | धवल चाँदनी । | ||
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− | + | दीपक नहीं | |
+ | छिटकी धरा पर | ||
+ | शिशु की हँसी । | ||
+ | 188 | ||
+ | आँधियाँ चलें | ||
+ | देख निष्कम्प दीप | ||
+ | पथ से टलें | ||
+ | 189 | ||
+ | दीप प्रेम का | ||
+ | हर घर में जले | ||
+ | अँधेरा टले । | ||
+ | 190 | ||
+ | स्नेह से भरो | ||
+ | उर- दीप को | ||
+ | उज्ज्वल करो। | ||
+ | 191 | ||
+ | आँधियों का क्या | ||
+ | बुझाएँगी वे दीप | ||
+ | हमें जलाना | ||
+ | 192 अँधेरे हटा | ||
+ | उगाएँगे सूरज | ||
+ | हर आँगन। | ||
+ | 193 | ||
+ | ठिठुरा चाँद | ||
+ | मलमल का कुर्ता | ||
+ | जब पहना | ||
+ | 194 | ||
+ | सिहरा ताल | ||
+ | लिपटी थी धुंध की | ||
+ | शीतल शाल । | ||
+ | 195 | ||
+ | नि:शब्द मन | ||
+ | भावों के घिरे घन | ||
+ | बरसे नहीं। | ||
+ | 196 | ||
+ | स्नेह छुअन | ||
+ | ताप था बह गया | ||
+ | निमल मन। | ||
+ | 197 | ||
+ | मैं वो नहीं | ||
+ | कोई और होगा जो | ||
+ | छलता रहा | ||
+ | 198 | ||
+ | मै तो साथ था | ||
+ | अँधेरों मे हमेशा | ||
+ | जलता रहा । | ||
+ | 199 | ||
+ | प्रेम जो मिला | ||
+ | मुरझाया जीवन | ||
+ | फूल- सा खिला । | ||
+ | 200 | ||
+ | ये प्यार कभी | ||
+ | परखा नहीं जाता | ||
+ | सिर्फ़ तन से । | ||
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04:32, 19 मई 2019 के समय का अवतरण
181
उदासी ओढ़े
कब तक है सोना?
दुख ही बोना।
182
खुली अलकें
बोझिल हैं पलके
सँवारों इन्हें
183
नींद न आई
पदचाप पाने में
उम्र बिताई
184
सुगन्ध मिली
ये शरद चाँदनी
चाँदी से बनी
185
धुले रूप -सी
गुनगुनी धूप -सी
यादें तुम्हारी।
186
आँचल छुपी
सूप भर बिखेरी
धवल चाँदनी ।
187
दीपक नहीं
छिटकी धरा पर
शिशु की हँसी ।
188
आँधियाँ चलें
देख निष्कम्प दीप
पथ से टलें
189
दीप प्रेम का
हर घर में जले
अँधेरा टले ।
190
स्नेह से भरो
उर- दीप को
उज्ज्वल करो।
191
आँधियों का क्या
बुझाएँगी वे दीप
हमें जलाना
192 अँधेरे हटा
उगाएँगे सूरज
हर आँगन।
193
ठिठुरा चाँद
मलमल का कुर्ता
जब पहना
194
सिहरा ताल
लिपटी थी धुंध की
शीतल शाल ।
195
नि:शब्द मन
भावों के घिरे घन
बरसे नहीं।
196
स्नेह छुअन
ताप था बह गया
निमल मन।
197
मैं वो नहीं
कोई और होगा जो
छलता रहा
198
मै तो साथ था
अँधेरों मे हमेशा
जलता रहा ।
199
प्रेम जो मिला
मुरझाया जीवन
फूल- सा खिला ।
200
ये प्यार कभी
परखा नहीं जाता
सिर्फ़ तन से ।