"बारिश की बूँदें / ओएनवी कुरुप" के अवतरणों में अंतर
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गर्मियों से मुग्ध थी धरती | गर्मियों से मुग्ध थी धरती | ||
− | पर बारिश की | + | पर बारिश की बून्दें पड़ते ही |
− | तुम बुदबुदाईं | + | तुम बुदबुदाईं — |
− | + | बारिश कितनी ख़ूबसूरत है ! | |
क्या तुम्हारा मन | क्या तुम्हारा मन | ||
− | मिट्टी से भी ज़्यादा | + | मिट्टी से भी ज़्यादा ठण्ड को महसूस करता है |
तभी तो बारिश में विलीन हो गए | तभी तो बारिश में विलीन हो गए | ||
− | छलकते हुए | + | छलकते हुए आनन्द को स्वीकार न कर |
− | तुमने आहिस्ता से कहा | + | तुमने आहिस्ता से कहा — |
− | + | बारिश कितनी ख़ूबसूरत है ! | |
तुम्हारे आँगन में | तुम्हारे आँगन में | ||
− | + | बून्द-बून्द में | |
− | अपने अनगिनत | + | अपने अनगिनत चान्दी के तारों में |
− | + | सँगीत की सृष्टि कर | |
बारिश | बारिश | ||
− | जिप्सी | + | जिप्सी लड़की की तरह नाचती है |
तुम्हारी आँखों में ख़ुशी है, आह्लाद है | तुम्हारी आँखों में ख़ुशी है, आह्लाद है | ||
और शब्दों में बच्चों-सी पवित्रता | और शब्दों में बच्चों-सी पवित्रता | ||
− | + | बारिश कितनी ख़ूबसूरत है ! | |
अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों | अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों | ||
से अनजान | से अनजान | ||
तुम यहाँ बैठी हो | तुम यहाँ बैठी हो | ||
− | नदी तुम्हारी स्मृतियों में | + | नदी तुम्हारी स्मृतियों में ज़िन्दा है |
− | अपनी सहेलियों के | + | अपनी सहेलियों के सँग |
धीरे से घाघरा उठाकर | धीरे से घाघरा उठाकर | ||
− | तुम नदी पार करती | + | तुम नदी पार करती हो |
− | अचानक बारिश गिरती | + | अचानक बारिश गिरती है |
− | लहरें | + | लहरें चान्दी के नुपूर पहन नाचती हैं |
बारिश में भीगकर हर्षोन्माद में | बारिश में भीगकर हर्षोन्माद में | ||
− | + | हंसते हुए तुम | |
नदी तट पर पहुँचती हो | नदी तट पर पहुँचती हो | ||
बारिश में भीगे आँवले के फूल | बारिश में भीगे आँवले के फूल | ||
− | + | पगडण्डी पर तुम्हारा स्वागत करते हैं | |
तुम्हारे सामने | तुम्हारे सामने | ||
− | केवल बारिश है, | + | केवल बारिश है, पगडण्डी है |
और फूलों से भरे खेत हैं ! | और फूलों से भरे खेत हैं ! | ||
मेरी उपस्थिति को भूलते हुए | मेरी उपस्थिति को भूलते हुए | ||
− | तुमने मृदुल आवाज़ में कहा | + | तुमने मृदुल आवाज़ में कहा — |
− | + | बारिश कितनी ख़ूबसूरत है ! | |
फिर तुम्हें देखकर | फिर तुम्हें देखकर | ||
− | मैंने उससे भी मृदुल आवाज़ में कहा | + | मैंने उससे भी मृदुल आवाज़ में कहा — |
− | + | तुम भी तो कितनी ख़ूबसूरत हो ! | |
'''मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स''' | '''मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स''' | ||
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02:00, 20 मई 2019 के समय का अवतरण
गर्मियों से मुग्ध थी धरती
पर बारिश की बून्दें पड़ते ही
तुम बुदबुदाईं —
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !
क्या तुम्हारा मन
मिट्टी से भी ज़्यादा ठण्ड को महसूस करता है
तभी तो बारिश में विलीन हो गए
छलकते हुए आनन्द को स्वीकार न कर
तुमने आहिस्ता से कहा —
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !
तुम्हारे आँगन में
बून्द-बून्द में
अपने अनगिनत चान्दी के तारों में
सँगीत की सृष्टि कर
बारिश
जिप्सी लड़की की तरह नाचती है
तुम्हारी आँखों में ख़ुशी है, आह्लाद है
और शब्दों में बच्चों-सी पवित्रता
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !
अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों
से अनजान
तुम यहाँ बैठी हो
नदी तुम्हारी स्मृतियों में ज़िन्दा है
अपनी सहेलियों के सँग
धीरे से घाघरा उठाकर
तुम नदी पार करती हो
अचानक बारिश गिरती है
लहरें चान्दी के नुपूर पहन नाचती हैं
बारिश में भीगकर हर्षोन्माद में
हंसते हुए तुम
नदी तट पर पहुँचती हो
बारिश में भीगे आँवले के फूल
पगडण्डी पर तुम्हारा स्वागत करते हैं
तुम्हारे सामने
केवल बारिश है, पगडण्डी है
और फूलों से भरे खेत हैं !
मेरी उपस्थिति को भूलते हुए
तुमने मृदुल आवाज़ में कहा —
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !
फिर तुम्हें देखकर
मैंने उससे भी मृदुल आवाज़ में कहा —
तुम भी तो कितनी ख़ूबसूरत हो !
मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स