भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इस तरह से भी सितम वो ढा रहे हैं / ऋषिपाल धीमान ऋषि" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:09, 21 मई 2019 के समय का अवतरण

इस तरह से भी सितम वो ढा रहे हैं
यों लगे जैसे करम फ़रमा रहे हैं।

कल चलेंगे ये भी मेरी राह पर ही
आज मुझको लोग जो समझा रहे हैं।

साफ कर लो हाथ, पत्थर फैंक कर तुम
खिड़कियों में कांच हम जड़वा रहे हैं।

जानते हैं सब कि मैं हूँ एक धारा
बांध फिर भी रेत का बनवा रहे हैं।

आग उगलते हैं जो मेरी पीठ पीछे
सामने वे लोग क्यों हकला रहे हैं।