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"उठा है दर्द कोई, बर्क़ की अदा की तरह / ऋषिपाल धीमान ऋषि" के अवतरणों में अंतर
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19:10, 21 मई 2019 के समय का अवतरण
उठा है दर्द कोई, बर्क़ की अदा की तरह
कोई तो आके मिले आज हमनवा की तरह।
जिसे नसीब जहां में किसी का प्यार नहीं
ये ज़िन्दगी उसे लगती है इक सज़ा की तरह।
यही नसीब था मेरा कि बार बार हुआ
मेरे फ़साने का अंजाम इब्तिदा की तरह।
है हर मेरे लिए, दुश्मनों का मीत हुआ
मेरा ये दिल था कभी एक आश्ना की तरह।
किसी ने आज तेरा ज़िक्र कर दिया, बरबस
बरस पड़ीं मेरी आंखें 'ऋषि' घटा की तरह।