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"ये सच है रोज़ अश्क़ों का मौसम नहीं मिला / ऋषिपाल धीमान ऋषि" के अवतरणों में अंतर
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19:18, 21 मई 2019 के समय का अवतरण
ये सच है रोज़ अश्क़ों का मौसम नहीं मिला
लेकिन कभी खुशी का भी आलम नहीं मिला।
हाथों को तेरे क़ुव्वते-ज़ुल्मो-सितम मिली
लेकिन हमें भी सब्र कोई कम नहीं मिला।
यों तो समन्दरों से घिरी है ज़मीन, पर
इक तश्नालब को क़तरा-ए-शबनम नहीं मिला।
बाक़ी है आरज़ू अभी इस दिल में दर्द की
बेशक मिला जो आपसे वो कम नहीं मिला।
वो शख्स मंज़िलों को नहीं पा सकेगा 'ऋषि'
जिसको कि रास्ता कोई पुरखम नहीं मिला।