भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रंग बदला, रूप बदला, रुख़ बदलना आ गया / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास' |अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:07, 22 मई 2019 के समय का अवतरण

रंग बदला, रूप बदला, रुख़ बदलना आ गया
हम को अपने को अय दोस्त छलना आ गया।

अब तो साज़िश नस्ल के बारे में भी होने लगी
उनको अपनी वल्दियत को भी बदलना आ गया।

धार पर तलवार की झूली है ऐसे ज़िन्दगी
भाप बन कर उड़ सकूँ इतना उबलना आ गया।

सभ्यता, शालीनता, तहज़ीब को, इखलास को
बर्फ की मानिंद रिस रिस कर पिघलना आ गया।

ये ज़माना चाहता है जानना 'विश्वास' से।
किस तरह उसको हवा के साथ चलना आ गया।