भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इक रब के भरोसे ही फ़क़त उम्र गुज़ारी हमने / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास' |अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:50, 22 मई 2019 के समय का अवतरण
इक रब के भरोसे ही फ़क़त उम्र गुज़ारी हमने
होने न दिया झूठ को सच्चाई पे भारी हमने।
मौक़ा है मिला जब भी, हुई भूल सुधारी हमने
दौलत को नहीं करने दिया खुद पे भारी हमने।
इक रोज़ कलेजे से लगाएंगे हमें वो आकर
फिलहाल अभी तक है ये उम्मीद न हारी हमने।
जान अपनी, ज़माने को परख, रब के हवाले कर दी
जब फैले हुए देखा हर एक ओर शिकारी हमने।
घबरा के अगर जंग से भागा है सिपाही या रब
पीछे से कभी पीठ में मारी न कटारी हमने।
इल्ज़ाम मेरे सिर पे , लगा खुश वो हुए हैं फिर भी
तोड़ीं न किसी शर्त पे इंसाफ़ से यारी हमने।
'विश्वास' गवाही है तारीख बराबर अपनी
धोखे से जो दुश्मन की भी गर्दन न उतारी हमने।