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"वागाम्भृणी सूक्त, ऋग्वेद - 10 / 125 / 1 / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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वाणी के देवी हम
रूद्र आउर वसुअन संग घूमींला।
हम आदित्य आउर देवता संग रहींला।
हमहीं मित्र आउर वरूण के धारण करींला।
इंदर देवता, अगिन देव आउर अश्वनि देवन के
हमहीं धारण करींला।
अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः ।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ॥1॥