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"वागाम्भृणी सूक्त, ऋग्वेद - 10 / 125 / 8 / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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एह अखिल भुवन मेें
हमहीं वायु रूप में
बहत रहींला।
आपन महिमा
हम का बखानीं
इ भूलोक, उ सुरूज लोक से उपर
सगरे बाणी-बोली रूप में
हमहीं मौजूद हईं। ॥8॥
अहमेव वात इव प्र वाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा ।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना सं बभूव ॥8॥