भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पिताओं के मर जाने के बाद / अनुपम सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपम सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
अपनी ननदों को बेटे की छटठी मेँ काजर लगाने पर दे दिया था ।
 
अपनी ननदों को बेटे की छटठी मेँ काजर लगाने पर दे दिया था ।
  
शाम को जब माँएँ कभी अकेले मेँ भी वह गठरी खोलती हैं
+
शाम को जब माँएँ कभी अकेले में भी वह गठरी खोलती हैं
 
तो सबसे पहले अपनी नसीब को कोसते,
 
तो सबसे पहले अपनी नसीब को कोसते,
 
कोख को धिक्कारते हुए  
 
कोख को धिक्कारते हुए  
 
पिताओं को ख़ूब ग़ालियाँ देतीं हैं
 
पिताओं को ख़ूब ग़ालियाँ देतीं हैं
 
</poem>
 
</poem>

20:32, 2 जून 2019 का अवतरण

माँओं की शामें लम्बी और उदास हो जाती हैं
उनके पास बचती है सिर्फ़ एक गठरी
जिसमेँ समय-समय के सँघर्षों का हिसाब होता है ।

उसी गठरी मेँ एक छोटी पोटली रहती है
जिसमें पिताओं द्वारा मारे गए थप्पड़ों का भी
बचा हुआ हिस्सा रखा रहता है सहेजकर,
थोड़ा सासुओं के अत्याचार और ननद की ईर्ष्या होती है,
जेठानियों के गहनों का नाम भी रहता है कोने में
माँएँ बताती हैं कि अपनी चारों अँगूठियाँ को
अपनी ननदों को बेटे की छटठी मेँ काजर लगाने पर दे दिया था ।

शाम को जब माँएँ कभी अकेले में भी वह गठरी खोलती हैं
तो सबसे पहले अपनी नसीब को कोसते,
कोख को धिक्कारते हुए
पिताओं को ख़ूब ग़ालियाँ देतीं हैं