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"पिताओं के मर जाने के बाद / अनुपम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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शाम को जब माँएँ कभी अकेले में भी वह गठरी खोलती हैं | शाम को जब माँएँ कभी अकेले में भी वह गठरी खोलती हैं | ||
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कोख को धिक्कारते हुए | कोख को धिक्कारते हुए | ||
पिताओं को ख़ूब ग़ालियाँ देतीं हैं | पिताओं को ख़ूब ग़ालियाँ देतीं हैं | ||
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20:32, 2 जून 2019 के समय का अवतरण
माँओं की शामें लम्बी और उदास हो जाती हैं
उनके पास बचती है सिर्फ़ एक गठरी
जिसमेँ समय-समय के सँघर्षों का हिसाब होता है ।
उसी गठरी मेँ एक छोटी पोटली रहती है
जिसमें पिताओं द्वारा मारे गए थप्पड़ों का भी
बचा हुआ हिस्सा रखा रहता है सहेजकर,
थोड़ा सासुओं के अत्याचार और ननद की ईर्ष्या होती है,
जेठानियों के गहनों का नाम भी रहता है कोने में
माँएँ बताती हैं कि अपनी चारों अँगूठियाँ को
अपनी ननदों को बेटे की छटठी मेँ काजर लगाने पर दे दिया था ।
शाम को जब माँएँ कभी अकेले में भी वह गठरी खोलती हैं
तो सबसे पहले अपने नसीब को कोसते हुए,
कोख को धिक्कारते हुए
पिताओं को ख़ूब ग़ालियाँ देतीं हैं