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"जो भी जीने के थे सामान गये / कुमार नयन" के अवतरणों में अंतर

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11:30, 3 जून 2019 के समय का अवतरण

जो भी जीने के थे सामान गये
ज़िन्दगी हम तुम्हें पहचान गये।

जी रहा हूँ मैं कोई बुत की तरह
जब से दिल के मिरे अरमान गये।

तेरे हाथों सज़ा पाने के लिए
बेबहस हम ख़ता ख़ुद मान गये।

तुम रुलाकर हमें खुश हो लो मगर
हमको ग़म है तुम्हें हम जान गये।

लब हिले ही नहीं पलकें न उठीं
दिल से दिल तक मगर फरमान गये।

एक मुद्दत पे तो आई थी हंसी
आप इस पर बुरा फिर मान गये।

ज़िन्दगी क्या तिरी पढ़ ली कि मेरे
कितने अफसानों के उनवान गये।