भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुसीबत जब हमें अच्छी तरह पहचान लेती है / कुमार नयन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार नयन |अनुवादक= |संग्रह=दयारे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:34, 3 जून 2019 के समय का अवतरण
मुसीबत जब हमें अच्छी तरह पहचान लेती है
तो उसके बाद वो लोहा हमारा मान लेती है।
बिठा लेती है इज़्ज़त से उसे सर-आंखों पर अपनी
ये दुनिया जिस किसी की नेक नीयत जान लेती है।
नहीं मैं मांगता हूँ कुछ मगर वो खुद भी तो देती
न जाने क्यों मिरी किस्मत मिरा एहसान लेती है।
नयी तहज़ीब की कुछ ख़ासियत हो या न हो लेकिन
वो पहले की तरह अब दिल नहीं ईमान लेती है।
उसी पल खत्म हो जाती हैं दहशत और बदअमनी
शराफ़त जुर्म से टकराव की जब ठान लेती है।
खुशी की धूप में हम जब कभी लगते हैं जलने तो
हमारी रूह ग़म का शामियाना तान लेती है।
'नयन' मुद्दत हुई तू मर गया अब भी मगर दुनिया
सुंकूँ पाने को हाथों में तिरा दीवान लेती है।