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"रात के ओ हमसुखन ओ हमसफ़र जाने तो दो / कुमार नयन" के अवतरणों में अंतर

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12:13, 3 जून 2019 के समय का अवतरण

रात के ओ हमसुखन ओ हमसफ़र जाने तो दो
हो गयी पूरी ग़ज़ल अब हमको घर जाने तो दो।

आंसुओं का क्या करोगे तुम सजाकर आंख में
ग़म के गौहर हैं ज़रा इनको बिख़र जाने तो दो।

हम फ़क़त सुनते रहे हैं तो न समझो बेज़बां
ख़ूब कहना जानते हैं हम मगर जाने तो दो।

डूबने का खेल मेरा देख लेना शौक़ से
छोड़कर साहिल समंदर में उतर जाने तो दो।

आइना हो तुम तो क्यों बेचैन होते हो जनाब
आ रहे हैं सामने हम सज सँवर जाने तो दो।

सोचकर कुछ चल पड़े हैं हम न पूछो क्यों कहां
राहे-उल्फ़त में हमें हद से गुज़र जाने तो दो।

ज़िन्दगी ने हमको पहली बार देखा इस तरह
बस ज़रा जीने दो मुझको और मर जाने तो दो।