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"हिला के रख देती है कलेजा हवा का रुख़ टहनियों से पूछो / कुमार नयन" के अवतरणों में अंतर

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12:18, 3 जून 2019 के समय का अवतरण

हिला के रख देती है कलेजा हवा का रुख़ टहनियों से पूछो
मगर महब्बत है क्या गुलों से लिपट गईं तितलियों से पूछो।

ये स्याह ज़ुल्फें लपेट लो तुम चलो अदा से मगर छुपाकर
लजा-लजा कर चली गई क्यों उठी थीं जो बदलियों से पूछो।

किसी ने तोड़ा है अपना वादा किसी ने तोड़ीं है अपनी कसमें
हमें शिकायत नहीं मगर उस रक़ीब की फब्तियों दे पूछो।

न अब्र काले घिरे हुए हैं न आज बादे-सबा चली है
हमारे दिल पर गिरी कहां से तुम अपनी इन बिजलियों से पूछो।

नया ज़माना नये ख़यालों के दौर में भी ये कैसी बंदिश
खुली फज़ाओं की सांस है क्या डरी हुई लड़कियों से पूछो।

न कोई नफ़रत न कत्लोगारत न कोई मज़हब का शोर ही है
महब्बतों से भरी हैं कैसे जनाब इन बस्तियों से पूछो।

न पूछो हमसे कि नींद कल शब न आई क्यों क्या है गुज़री हम पर
रक़म हुई कैसे दास्तां ये क़लम से या उंगलियों से पूछो।